इजरायल-फलस्तीन विवाद क्या है: आखिर कब और कैसे शुरू हुई इन दोनों देशों के बीच लड़ाई?

इजरायल और फिलिस्तीन में संघर्ष एक सदी से भी ज्यादा पुराना है. 1948 से पहले तक इजरायल नाम का कोई देश अस्तित्व में नही था. ये पूरा फिलिस्तीन ही था, जिसपर कभी ऑटोमन साम्राज्य का राज था

इजरायल और फिलिस्तीन दोनों देशों के बीच संघर्ष के बारे में आरंभ करने से पहले हमें इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। इसके बाद ही हम इन दोनों देशों के बीच चलने वाले इस लंबे संघर्ष को अधिक बेहतर तरीके से समझ पाने में सक्षम हो सकेंगे।

देखा जाये तो, इजरायल अपेक्षाकृत एक छोटा सा देश  है। इजरायल के उत्तर में लेबनान नामक देश स्थित है, जबकि इसके दक्षिण में मिस्र देश स्थित है। इजराइल के पूर्वी भाग में जॉर्डन और सीरिया नामक देशों की उपस्थिति है, जबकि इजरायल के पश्चिमी भाग में अत्यंत प्रसिद्ध ‘भूमध्य सागर’ स्थित है। अर्थात् इजरायल अपने चारों ओर से जिन देशों से घिरा हुआ है, इन्हें ‘अरब देशों’ के नाम से जाना जाता है। अरब क्षेत्र में इजराइल के चारों ओर उपस्थित इन देशों के अलावा अन्य देश भी शामिल हैं। ये समस्त अरब देश इजरायल के विरुद्ध मिलकर हमला करते हैं, लेकिन इजरायल तकनीकी रूप से, सैन्य रूप से और आर्थिक रूप से इतना मजबूत है कि वह अकेले ही अपने चारों ओर उपस्थित इन देशों से अच्छे से निपटने में सक्षम है।

यहाँ उपस्थित सभी अरब देश मिलकर फिलिस्तीन का ही साथ देते हैं और वे चाहते हैं कि यहाँ से यहूदियों को पूरी तरह से साफ कर दिया जाए और इस संपूर्ण क्षेत्र को फिलिस्तीन को सौंप दिया जाए। ये सभी अरब देश इजरायल के अस्तित्व को समाप्त करके सिर्फ फिलिस्तीन के अस्तित्व को ही बनाए रखने के लिए उत्सुक हैं। तो आइए, अब हम इजरायल और फिलिस्तीन के मध्य लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को विस्तार रूप से समझने की कोशिश करते हैं।

इजरायल और फिलिस्तीन संघर्ष : 

  • इजराइल और फिलीस्तीन के बीच संघर्ष की शुरुआत कोई हाल ही में उभरी घटना नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई थी। दरअसल, 1897 ईस्वी में फिलिस्तीन के क्षेत्र में यहूदियों का उत्पीड़न हो रहा था। यहूदियों ने अपने इस उत्पीड़न से बचने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की थी। इतिहास में यह आंदोलन ‘जायोनी आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है।
  • जायोनी आंदोलन में सऊदी को फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ सफलता मिली और उन्होंने उस क्षेत्र में एक इजरायली राज्य की स्थापना की। इसी सन्दर्भ में इसी दौरान एक ‘विश्व जियोनी संगठन’ का गठन भी हुआ। इस का उद्देश्य यहूदियों को सुरक्षा प्रदान करना और उनके हितों की रक्षा करना था।
  • जब पहले विश्व युद्ध का दौर चल रहा था, तब उस समय 1916 ईस्वी में ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य में एक ‘साइक्स पिकोट’ नामक गुप्त समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। इस अधिनियम के तहत यह कहा गया है कि प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद फिलिस्तीन पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित हो जाएगा।
  • इसके बाद कालांतर में, ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश सचिव जेम्स बाल्फोर की अध्यक्षता में एक निर्णय लिया जाता है। इस निर्णय के तहत यहूदी मातृभूमि की स्थापना करने पर सहमति व्यक्त की जाती है और यहूदियों के लिए एक देश के गठन की मांग को स्वीकार किया जाता है। इस घोषणा को इतिहास में ‘बाल्फोर घोषणा’ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। इस घोषणा के बाद इजरायल के लिए एक पृथक देश के गठन का आधिकारिक आधार तैयार हो जाता है।
  • फिर आगे 1930 ईस्वी में जर्मनी में नाजी शासन की स्थापना होती है। नाजी शासन द्वारा यहूदियों को प्रताड़ित किया जाता है। ऐसी स्थिति में, यहूदी लोग इस प्रताड़ना से बचने के लिए अपनी जान बचा कर भागते हैं और फिलिस्तीन में आना शुरू हो जाते हैं। इससे धीरे धीरे फिलिस्तीन के क्षेत्र में यहूदी बस्तियों का विस्तार होना शुरू हो जाता है। लेकिन इस क्षेत्र में होने वाली यहूदियों की बसावट का अरब के वासियों द्वारा तीखा विरोध किया जाता है और यहीं से यहूदी और अरबों के बीच संघर्ष की शुरुआत हो जाती है।

यहूदियों और अरबों के बीच संघर्ष की शुरुआत :

  • जर्मनी के नाजी शासन की प्रताड़ना से बचने के लिए फिलिस्तीन के क्षेत्र में आकर यहूदियों का बसने और उसके आसपास के अरब क्षेत्र के लोगों द्वारा इस परिघटना का विरोध करने से ‘यहूदी और अरबों के बीच संघर्ष’ की शुरुआत हुई थी। यह संघर्ष धीरे-धीरे और अधिक गंभीर होता गया तथा अपने अपने क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए दोनों पक्षों के बीच विभिन्न युद्ध लड़े गए। विश्व स्तर पर कुछ देश इजरायल का समर्थन करते हैं, जबकि मुख्यतः सभी अरब देश फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं। इसी दौर में इजरायल तकनीकी दृष्टि से अत्यंत आगे निकल जाता है तथा चारों ओर से शत्रुओं से घिरा होने के बावजूद अपनी रक्षा करने में सक्षम हो जाता है।
  • इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर 1947 ईस्वी में ब्रिटेन द्वारा यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष भेजा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस मुद्दे पर यह निर्णय लिया जाता है कि फिलिस्तीन के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर दिया जाए तथा इसमें से एक हिस्सा अरबों को और दूसरा हिस्सा यहूदियों को दे दिया जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह निर्णय यहूदियों द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता है और यहूदी 1948 ईस्वी में इजरायल को स्वतंत्र देश घोषित कर देते हैं।
  • इसी समय 1948 ईस्वी में ब्रिटेन द्वारा फिलिस्तीन के क्षेत्र से अपनी सेनाएँ भी हटा ली जाती हैं, लेकिन अरबों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के इस निर्णय को मानने से इनकार कर दिया जाता है और वह यहूदियों के विरुद्ध संघर्ष करने का मार्ग चुनते हैं। उल्लेखनीय है कि इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाए गए फिलिस्तीन क्षेत्र से संबंधित मुद्दे पर भारत इजरायल के विरुद्ध तथा अरबों के पक्ष में मतदान करता है। फिलिस्तीन और इजरायल के संघर्ष से संबंधित संपूर्ण घटनाक्रम को हम इस आलेख के आगामी खंड में क्रमिक रूप से समझने का प्रयास करेंगे।

“हमास” नामक आतंकवादी संगठन का उदय :

  • इजरायल और फिलिस्तीन के मध्य चलने वाले इस लंबे संघर्ष के बीच फिलिस्तीन के लोगों ने आतंकवाद के माध्यम से अपने उद्देश्य को पूरा करने का विचार बनाया और उन्होंने 1987 ईस्वी में ‘हमास’ नामक एक आतंकवादी संगठन का गठन किया। इस आतंकवादी संगठन का उद्देश्य जिहाद का सहारा लेकर स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना करने के लिए एक भू भाग पर कब्जा करना है और आतंकवाद के माध्यम से इजरायल को कमजोर करना है।
  • यह हमास नामक संगठन एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम संगठन है। इस संगठन को सीरिया और ईरान द्वारा समर्थन प्रदान किया जा रहा है। वर्तमान में इस संगठन ने गाजा पट्टी नामक स्थल पर अपना कब्जा स्थापित कर रखा है। गाजा पट्टी फिलिस्तीन के लोगों का बहुल क्षेत्र है और यह भूमध्य सागर के तट पर स्थित है।
  • हमास नामक यह संगठन संयुक्त राष्ट्र संगठन तथा ‘ओस्लो शांति समझौते’ द्वारा सुझाए गए ‘दो राज्यों के समाधान’ (Two State Solution) को मानने के लिए तैयार नहीं है। यह संगठन इस क्षेत्र में इजरायल के सभी दावों को पूर्ण रूप से खारिज करता है।

हमास ने कैसे दिया इजरायल को धोखा  :

शनिवार यानी 7 अक्टूबर 2023 को हमास आतंकियों ने इजरायल पर हमला किया. 1973 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था, जब इस तरह का हमला किया गया है. हमास ने अपने पूरे प्लान को बेहद खुफिया तरीके से बनाया. उसने इजरायल के सामने ये पेश किया कि अब वो जंग लड़ नहीं सकता. इसी बात पर इजरायल ने भरोसा कर लिया.

इजरायल की आंख के सामने गाजा में हमास आतंकियों की ट्रेनिंग कर रहा था. जबकि इजरायल को ये लग रहा था कि वो गाजा के मजदूरों को आर्थिक सहायता देकर हमास की रीढ़ तोड़ रहे हैं. हमास के नजदीकी संबंध रखने वाले तीन सूत्रों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को नाम न छापने की शर्त पर हमास की प्लानिंग के बारे में बताया

हमास ने इजरायल को यह भरोसा दिलाया कि अब वो लड़ाई के लिए तैयार नहीं है. ये ठीक वैसा ही था, जैसे 50 साल पहले योम किप्पर युद्ध हुआ था. तब मिस्र और सीरिया ने मिलकर इजरायल पर सरप्राइज अटैक कर दिया था. इजरायल की कमर तोड़ दी थी. पिछले कुछ महीनों से हमास लगातार इजरायल के खुफिया तंत्र को बेवकूफ बनाता आ रहा था

जब हमलावर आतंकियों की ट्रेनिंग चल रही थी, उस समय भी कई हमास नेताओं को इस प्लान के बारे में जानकारी नहीं थी. 1000 आतंकियों को हमले के लिए तैयार किया जा रहा था. लेकिन किसी को इस तैयारी के पीछे का मकसद नहीं पता था. जब हमला करने का दिन आया, तब पूरे ऑपरेशन को चार हिस्सों में बांट दिया गया.

सबसे पहले  गाजा से 3000 रॉकेट दागे गए. इसके ठीक बाद हमास लड़ाके हैंग ग्लाइडर, मोटराइज्ड ग्लाइडर के जरिए सीमा पार करके इजरायल में घुसे. उन्होंने जमीन पर कब्जा जमाना शुरू किया. इसके बाद एलीट कमांड यूनिट ने इलेक्ट्रॉनिक और सीमेंट की दीवार को तोड़ा ताकि इजरायली सेना घुसपैठ न रोक सके.

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